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नाश को प्राप्त करने वाली आदतें

राजा भोज और कालिदास दरबार में बैठे है भरी सभा में प्रश्न होता है की   यदि जल्दी नष्ट होना हो तो उसकी क्या गति है?..... एक दिन महाराजा भोज ने...

राजा भोज और कालिदास दरबार में बैठे है भरी सभा में प्रश्न होता है की 

 यदि जल्दी नष्ट होना हो तो उसकी क्या गति है?.....


एक दिन महाराजा भोज ने अपने दरबारियों से पूछा कि नष्ट होने वाले की क्या गति होती है ? 

कोई दरबारी उत्तर न दे सका । राजा ने कविवर कालिदास से पूछा तो वे भी मौन रहे और कहने लगे कि कल इसका उत्तर दिया जाएगा । 

महाराजा भोज प्रतिदिन प्रातः भ्रमण करने जाते थे। जिस मार्ग से वे भ्रमण के लिए जाते थे,उसी मार्ग से लौटते समय उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा । उन्होंने देखा कि एक संन्यासी खड़ा है । वह भिक्षा-पात्र लिये हुए है और उसमें माँस के टुकड़े रखे हुए हैं। महाराजा भोज को बहुत आश्चर्य हुआ कि वे प्रातःकाल क्या वीभत्स दृश्य देख रहे हैं ।

 उन्होंने आश्चर्यचकित होकर पूछा―

"भिक्षो ! मांसनिषेवनं प्रकुरुषे ?"

("अरे भिक्षु ! तू संन्यासी होकर मांस का सेवन करता है ?")

साधु ने उत्तर दिया―

"किं तेन मद्यं विना।"

[ (शराब पिये बिना मांस खाने का क्या आनन्द ?)

इस पर चकित होकर महाराज ने पूछा―

"मद्यं चापि तव प्रियम् ?"

(क्या शराब भी तुझे प्यारी है ?)

उस साधु ने कहा―

"प्रियमहो वारांगनाभिः सह ।"

(अरे केवल शराब ही मुझे प्रिय नहीं है, अपितु वेश्यावृत्ति के साथ शराब भी प्यारी है।)

 महाराजा भोज को बड़ा दुःख हुआ कि उनके राज्य में ऐसा भी संन्यासी रहता है जिसे मांस के साथ शराब और शराब के साथ वेश्यावृत्ति में भी रुचि हो । 

वे और चकित होकर पूछने लगे―


"तासामर्थरुचिः कुतस्तव धनम् ?"


(अरे वे वेश्याएँ तो धन की इच्छुक होती हैं। तेरे पास धन नहीं है, तू तो भिक्षु ठहरा ।)

साधु ने उत्तर दिया―

"द्यूतेन चौर्येण वा ।"

(मैं जुआ खेलकर और चोरी करके पैसा प्राप्त कर लेता हूँ।)

इस पर महाराजा भोज पूछने लगे-

"चौर्यद्यूतपरिग्रहोSपि भवतः ।"

(क्या तुझे चोरी और जुआ भी प्रिय है ?)

इस पर उस साधु ने कहा―

"नष्टस्य काSन्या गतिः ।"

(जो व्यक्ति नष्ट होना चाहता हो, उसकी अन्य क्या गति हो सकती है ? अर्थात् इस मार्ग से चलकर केवल और केवल नाश को ही प्राप्त हुआ जा सकता हैl

अंत  मे महाराज भोज ने विचार किया कि ऐसे उत्तर देने वाला कालिदास ही हो सकते है ।अत:कालिदास को पहचानकर सम्मानित किया ।

कथा का निष्कर्ष यही है कि एक ग़लत आदत बर्बाद कर सकती है।

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