गोवत्स द्वादशी व्रत महत्व हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है ,हमारे यहाँ जीव हत्या को पाप माना जाता है । भारत में दूध दही घी कृषि आदि में गाय...
गोवत्स द्वादशी व्रत महत्व
हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है ,हमारे यहाँ जीव हत्या को पाप माना जाता है ।
भारत में दूध दही घी कृषि आदि में गाय का बड़ा योगदान रहा है ,इसीलिए गाय पूजनीय है ।
दूसरे हमारे देश में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है।
धार्मिक पुराणो में ख़ासकर श्रीमद्भागवत में गौ पूजन का महत्व अधिक दिया है इसी भावना से गौवत्स द्वादशी मनायी जाती है ।
द्वादशी कौन से दिन की है?
पूरण पंडित के अनुसार, 21 अक्टूबर दिन शुक्रवार को शाम 15 :33 द्वादशी आरम्भ होगी पूजा प्रदोष काल संध्या में शुक्लयोग मघा नक्षत्र २२ अक्टूबर शनिवार तक
गोवत्स द्वादशी व्रत महत्व
धन हो तो दूध देने वाली स्वस्थ गाय का दान करना चाहिए। कम से कम पांच, दस या सोलह बरस तक इस व्रत को करने के बाद ही उद्यापन करना चाहिए। इस व्रत को करने वाला अति उत्तम भोगों के साथ-साथ मृत्यु के बाद गोलोक धाम की प्राप्ति करता है।
गोवत्स द्वादशी व्रत महत्व |
गोवत्स द्वादशी, ओमद्वास व्रत का पूजन विधि :-
द्वादशी का व्रत कैसे किया जाता है?
सबसे पहले सुबह-सुबह नहा धो कर स्वच्छ वस्त्र पहन कर तैयार हो जाएं।
दूध देने वाली गाय और बछड़े के पास जाएं।
गाय को व बछड़े को शुद्ध पानी से नहला कर तैयार कर ले। फिर उन्हें वस्त्र से फूल माला आदि से सजा ले फिर उनके सींग को भी सजा लें।
फिर गाय को व बछड़े को रोली का टीका करें।
चावल के स्थान पर बाजरा से टीका लगाएं।
फिर गाय को मक्के बाजरे से बनी हुई रोटी व बेसन से बनी हुई चीजें खिलाएं।
फिर गाय के बछड़े को भी भोजन खिलाए अंकुरित अनाज चना मोठ मूंग मटर जैसी चीजें ही खिलाएं।
गेहूं व चावल से बने हुए पदार्थ बिल्कुल ना खिलाए ना खाएं यह वर्जित है।
इस दिन गाय के दूध से बनी हुई पदार्थ भी वर्जित है यह दिन सिर्फ भैंस के दूध से बनी हुई चीजें इस्तेमाल की जाती है।
भोजन खिलाने के बाद गाय के चरणों की धूल से तिलक करें ।
अगर आपके पास गाय या बछड़ा नहीं है या आपके आस पास भी कहीं नहीं मिल रही है तो बछवारस कैलेंडर ले ले या ( बछवारस पाटा) बना ले।
फिर इसके बाद कथा सुने।
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सहानुभुति की आवश्यता
ध्यान रहे कथा सुनते वक्त बाजरा अपने हाथ में लेकर रखें।
कथा जब खत्म हो जाए तो अपनी सास का आशीर्वाद अवश्य लें उन्हें एक कटोरी में भीगा हुआ चना मोठ व कुछ रुपए रख कर दें व उनका पैर छूकर आशीर्वाद लें।
इसके बाद अपने पुत्र को पूजा का एक लड्डू दें वह उनको तिलक लगाएं व नारियल दे।
शाम को जब गाय चारा खा कर वापस आए तो उसके बाद भी गाय की पूजा करें।
गोवत्स पूजन व व्रत के लाभ :-
माना जाता है कि इस दिन व्रत रहने से पुत्र की प्राप्ति होती है व कृष्ण जी भी खुश होते हैं, इस दिन पूजा करने से सभी देवी देवताओं के पूजन का लाभ प्राप्त होता है। इस दिन गाय व बछड़े के पूजन का विशेष महत्व है|
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