कब है तुलसी एकादशी - रमा एकादशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत इस साल 20 अक्टूबर को शाम 02 बजकर 04 मिनट से हो रही...
कब है तुलसी एकादशी-रमा एकादशी
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत इस साल 20 अक्टूबर को शाम 02 बजकर 04 मिनट से हो रही है। वहीं ये तिथि अगले दिन 21 अक्टूबर को शाम 03बजकर 33 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत 21 अक्टूबर को रखा जाएगा।
आज ही गोवत्स द्वाद्शी एवम प्रदोश भी होगा
इसे तुलसी एकादशी भी कहते हैं
तुलसी एकादशी
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ही तुलसी एकादशी कहा । गया है । तुलसी नामक पौधे की महिमा वैद्यक ग्रंथों के साथ - साथ धर्मशास्त्रों में भी काफी गाई गई है । शास्त्रों में तुलसी को विष्णु प्रिया भी । माना गया है । इस विषय का कथा सार निम्न है --
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तुलसी एकादशी व्रत कथा
श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपने रूप पर बड़ा गर्व था । वे सोचती थीं कि रूपवती होने के कारण ही श्रीकृष्ण उनसे अधिक स्नेह रखते हैं । एक दिन जब नारदजी उथर गए तो सत्यभामा ने कहा- " आप मुझे । | आशीर्वाद दीजिए कि अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण ही मुझे पतिरूप में प्राप्त हों । "
नारदजी बोले - - “ नियम यह है , यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रिय वस्तु इस जन्म में दान करे तो वह उसे अगले जन्म में प्राप्त होगी । अतः तुम भी श्रीकृष्ण को दान रूप में मुझे दे दो तो वे तुम्हें अगले जन्म में जरूर मिलेंगे । " सत्यभामा ने श्रीकृष्ण को नारदजी को दान रूप में दे दिया । जब नारदजी उन्हें ले जाने लगे तो अन्य रानियों ने उन्हें रोक लिया । इस पर नारदजी बोले– “ यदि श्रीकृष्ण के बराबर सोना व रत्न दे दो तो हम इन्हें छोड़ देंगे ।
तब तराजू के एक पलड़े में श्रीकृष्ण बैठे तथा दूसरे पलड़े में सभी रानियां अपने-अपने आभूषण चढ़ाने लगीं, पर पलड़ा टस से मस न | हुआ। यह देखकर सत्यभामा ने कहा – “यदि मैंने इन्हें दान किया है तो उबार भी लूंगी।" यह कहकर उन्होंने अपने सारे आभूषण चढ़ा दिए, पर | पलड़ा नहीं हिला। वे बड़ी लज्जित हुईं।
सारा समाचार जब रुक्मिणीजी ने सुना तो वे तुलसी पूजन करके | उसकी पत्ती ले आईं। उस पत्ती को पलड़े पर रखते ही तुला का वजन बराबर हो गया। नारद तुलसी दल लेकर स्वर्ग को चले गए। रुक्मिणी | श्रीकृष्ण की पटरानी थीं। तुलसी के वरदान के कारण ही वे अपनी अन्य रानियों के सौभाग्य की रक्षा कर सकीं।
tulsi-ji |
तब से तुलसी को यह पूज्य-पद प्राप्त हो गया कि श्रीकृष्ण उसे सदा अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
इसी कारण इस एकादशी को तुलसीजी का व्रत व पूजन किया जाता है।
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रमा एकादशी
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
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