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गण्ड मूल में जन्मे जातक कैसे होते हैं

  गण्ड मूल में जन्मे जातक कैसे होते हैं- ‘जातका भरणम’, ‘जातक पारिजात’ और ‘ज्योतिष पाराशर’ ग्रंथों में गण्डांत या गण्ड मूल नक्षत्रों का उल्ले...

 
गण्ड मूल इमेज

गण्ड मूल में जन्मे जातक कैसे होते हैं-

‘जातका भरणम’, ‘जातक पारिजात’ और ‘ज्योतिष पाराशर’ ग्रंथों में गण्डांत या गण्ड मूल नक्षत्रों का उल्लेख है। मुख्यत: वे नक्षत्र, जिनसे राशि और नक्षत्र दोनों का ही प्रारम्भ या अंत होता है, वे इस श्रेणी में आते हैं। इस तरह अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती नामक नक्षत्र गण्ड मूल नक्षत्र हैं। इन सभी नक्षत्रों के स्वामी या तो बुध हैं या केतु। शास्त्रों में इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातकों के लिए जन्म से ठीक 27वीं तिथि को मूल शांति आवश्यक बताई गई है। वैसे इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातकों के जीवन में किसी तरह की नकारात्मक स्थिति होती है, ऐसा नहीं है। लेकिन इन जातकों के लिए धन-हानि और अर्जित निधि को खोने की आशंकाएं बनी रहती है। अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाले जातक जीवन में सफल होते हैं, वहीं रेवती नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्म लेने वाले जातक भाग्यशाली होते हैं।

मूल नक्षत्र शांति

राशि चक्र में तीन स्थितियां ऎसी आती हैं, जब राशि और नक्षत्र दोनों की समाप्ति एक साथ होती हैं इसे गण्ड नक्षत्र कहते हैं। दूसरे समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र के उद्गम को मूल नक्षत्र कहते हैं। इस तरह तीन नक्षत्र गण्ड एवं तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में जन्मे शिशु के सुखद भविष्य के लिए शांति कराई जाती है। शांति कराने का शास्त्रीय विधान क्यों बताया गया है, यह ध्यान देने योग्य तथ्य है।

शास्त्रों की मान्यता है कि संधि क्षेत्र सदैव नाजुक और अशुभ होते हैं। जन सामान्य की मान्यतानुसार भी है- चौराहे, तिराहे, दिन-रात का संधि काल, संक्रांति का संधि काल, ऋतु-लग्न एवं ग्रह के संधि स्थल को शुभ नहीं मानते हैं। चूंकि गण्ड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देन।

भाग्यशाली भी होते हैं मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले

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ज्योतिषशास्त्र में गंड मूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है। ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि अगर बच्चे का जन्म गंड मूल नक्षत्र में हो तब एक महीने के अंदर जब भी वही नक्षत्र लौटकर आए, उस दिन गंड मूल नक्षत्र की शांति करा लेनी चाहिए अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।

यह पूरी तरह सच नहीं है। शतपथ ब्राह्मण और तैत्तिरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कि कुछ स्थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है। और इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होता है।

व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है। गण्ड मूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गण्ड मूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होता है।

गण्डमूल का प्रभाव

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्लेषा के चौथे चरण में, मघा एवं मूल के पहले चरण में एवं ज्येष्ठा के चौथे चरण में हुआ है तब मूल नक्षत्र हानिकारक होता है। बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव और बढ़ जाते हैं।

गण्डमूल नक्षत्रों चरणानुसार फल

चरण    १अश्विनी    २आश्लेषा ३मघा    ४ज्येष्ठा    ५मूल    ६रेवती

प्रथम 

   पिता कष्ट    राज्य प्राप्ति    माता कष्ट    ज्येष्ठ भ्राता नाश    पिता नाश    राज्य प्राप्ति

दूसरा    शुभ    धन नाश    पिता कष्ट    छोटा भाई नाश    माता नाश    मन्त्री पद

तीसरा    शुभ    माता नाश    सुख    माता नाश    धन क्षय    सुख सम्पत्ति

चौथा    शुभ    पिता नाश    धन प्राप्ति    स्वयं नाश    शुभ    स्वयं कष्ट

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पुराणों में गण्डमूल नक्षत्र

पुराणों में अनेक स्थानों पर गंडांत नक्षत्रों का उल्लेख किय गया है। रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ ,अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही गई हैं।

 मघा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा एवम मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं विशेषतः ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य का एक प्रहर अत्यंत अशुभ फल देने वाला है इस अवधि में उत्पन्न बालक /बालिका व उसके माता -पिता को जीवन का भय होता है गंडांत नक्षत्रों  को सभी शुभ कार्यों में त्याग देना चाहिए  28 वें दिन उसी नक्षत्र में गण्डमूल दोष की शांति कराने पर दोष की निवृति हो जाती है।

स्कन्द पुराण के काशी खंड में सुलक्षणा नाम की कन्या का वर्णन है जिसका जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था  तथा उस बाला के माता-पिता दोनों का देहांत उस के जन्म के कुछ समय के बाद ही हो गया था। नारद पुराण के अनुसार मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण को छोड़ कर शेष चरणों में तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण में उत्पन्न संतान विवाहोपरांत अपने ससुर के लिए घातक होती है। ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न कन्या अपने जेठ के लिए  तथा विशाखा में उत्पन्न कन्या अपने देवर के लिए अशुभ फल का संकेत कारक होती है। दिन में गंडांत नक्षत्र में उत्पन्न संतान पिता को रात्रि में माता को व संध्या काल में स्वयम को कष्ट कारक होता है।

ज्योतिष शास्त्र  में गण्डमूल नक्षत्र

फलित ज्योतिष के जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी प्राचीन ग्रंथों में गंडांत नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है।अश्वनी ,आश्लेषा ,मघा ,ज्येष्ठा ,मूल तथा रेवती नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र हैं।

अश्वनी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है।

आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है। यह फल पहले दो  वर्षों में ही मिल जाता है।

मघा नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है।

ज्येष्ठा नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो बड़े भाई को कष्ट ,दूसरे में छोटे भाई को कष्ट, तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है। यह फल पहले वर्ष में ही मिल जाता है।

ज्येष्ठा नक्षत्र एवम मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या अपने भाई के लिए घातक होती है।

मूल नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट दूसरे में माता को कष्ट तीसरे में धन हानि तथा चौथे में शुभ होता है। मूल नक्षत्र व रवि वार के योग में उत्पन्न कन्या अपने ससुर का नाश करती है। यह फल पहले चार वर्षों में ही मिल जाता है।

जातकाभरणं के अनुसार जन्म के समय  मूल नक्षत्र हो तथा कृष्ण पक्ष की ३ ,१० या शुक्ल पक्ष की १४ तिथि हो एवम मंगल ,शनि या बुधवार हो तो सारे कुल के लिए अशुभ होता है। मूल नक्षत्र के साथ राक्षस ,यातुधान ,पिता ,यम व काल नामक मुहुर्तेशों  के काल में जन्म हो तो गण्डमूल दोष का प्रभाव अधिक विनाशकारी होता है।

रेवती नक्षत्र के चौथे चरण  में जन्म हो तो माता -पिता के लिए अशुभ तथा अन्य चरणों में शुभ होता है।

अभुक्त मूल ज्येष्ठा नक्षत्र की अंतिम दो घटियाँ तथा मूल नक्षत्र की आरम्भ  की दो घटियाँ अभुक्त मूल हैं जिनमें उत्पन्न बालक , कन्या  , कुल के लिए अनिष्टकारी होते हैं। इनकी शान्ति अति आवश्यक है।

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