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त्रिगुणात्मक प्रकृति सृष्टि और जीवन की जटिलता

त्रिगुणात्मक प्रकृति, जिसे वेदांत और अन्य वैदिक शास्त्रों में प्रमुखता से समझाया गया है, सृष्टि के तीन मौलिक गुणों-सत्त्व (शुद्धि और ज्ञान),...

त्रिगुणात्मक प्रकृति, जिसे वेदांत और अन्य वैदिक शास्त्रों में प्रमुखता से समझाया गया है, सृष्टि के तीन मौलिक गुणों-सत्त्व (शुद्धि और ज्ञान), रजस् (क्रिया और ऊर्जा), और तमस् (अज्ञान और जड़ता) - का सिद्धांत है। ये तीन गुण प्रकृति की सभी वस्तुओं, प्राणियों और घटनाओं में विद्यमान रहते हैं और इनके बीच का संतुलन ही सष्टि के संचालन का आधार है। आइए इन तीन गुणों को शास्त्रीय प्रमाण के साथ विस्तार से समझते हैं:

1. सत्त्व गुण (सत्य और ज्ञान का गुण)


३ सत्त्व गुण शुद्धि, ज्ञान, संतुलन, और शांति का प्रतीक है। यह गुण उन सभी में प्रमुख होता है जो ज्ञान, चेतना और विकास से संबंधित हैं। जब सत्त्व गुण बढ़ता है, तब व्यक्ति के भीतर ज्ञान, आत्मसंयम, धर्म और शांति का विकास होता है। यह गुण आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करता है।

शास्त्र प्रमाणः

भगवद गीता (14.6) में भगवान श्रीकृष्ण सत्त्व गुण के संबंध में कहते हैं:

-"तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात् प्रकाशकमनामयम्। सुखसङ्गेन बनाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥" अर्थः सत्त्व गुण निर्मल और प्रकाशक है, जिससे शुद्धता और ज्ञान उत्पन्न होता है। यह ज्ञान और सुख से बांधता है।

2. रजस् गुण (क्रिया और ऊर्जा का गुण)

रजस् गुण सक्रियता, क्रियाशीलता, इच्छा, और भौतिक गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है। यह गुण व्यक्ति को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है और भौतिक संसार की इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं की ओर खींचता है। रजस् गुण से प्रेरित व्यक्ति हमेशा किसी न किसी गतिविधि में लगा रहता है और सफलता, समृद्धि, और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत होता है।

शास्त्र प्रमाणः

भगवद गीता (14.7) में रजस् गुण को इस प्रकार समझाया गया है:

"रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्। तत् बधाति कौन्तेय कर्मसन देहिनम् ॥" अर्थ: हे कौन्तेय, रजस गुण को कामनाओं और कर्मों का जन्मदाता जान जो कर्मों के साथ शरीरधारी जीव को बांधता है।

3. तमस् गुण (अज्ञान और जड़ता का गुण)

तमस् गुण आलस्य, अज्ञान, जड़ता, और मानसिक अंधकार का प्रतीक है। पह व्यक्ति को निष्क्रियता, भ्रम और अज्ञानता की ओर ले जाता है। जब तमस् गुण प्रम होता है, तो व्यक्ति के विचारों और कार्यों में अव्यवस्था, आलस्य, औ असंवेदनशीलता देखने को मिलती है। यह गुण व्यक्ति को मोह, भ्रम, और नकारात्मकता में बांधता है।

शास्त्र प्रमाणः

भगवद गीता (14.8) में तमस् गुण के संबंध में कहा गया है:

"तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्। प्रमादालस्यनिद्राभिस्तत्रिवप्नाति भारत ॥" अर्थ: हे भारत, तमस् अज्ञान से उत्पन्न होता है, जो सभी प्राणियों के लिए मोहकारक है। यह प्रमाद, आलस्य और निद्रा से बांधता है।

त्रिगुणों की परस्पर क्रियाः

सृष्टि के हर जीव और वस्तु में ये तीन गुण विभिन्न अनुपात में पाए जाते हैं। किस व्यक्ति या वस्तु में कौन सा गुण प्रबल होगा, यह उसके कर्म, भावनाओं, और मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। त्रिगुणों के मिश्रण से ही जीवन में विविधता और परिवर्तन आते हैं। एक व्यक्ति सत्त्व गुण की प्रधानता से शांत, ज्ञानवान और धर्मपरायण होता है; रजस् की प्रधानता से कर्मशील, महत्वाकांक्षी और भौतिक सुखे का इच्छुक होता है; जबकि तमस् की प्रधानता से आलसी, जड़ और अज्ञानी बनता 1 है।

विवेकानुसार गुणों का विकासः

गीता में श्रीकृष्ण यह भी बताते हैं कि व्यक्ति अपने विवेक और आत्मसंयम के माध्यम से सत्त्व गुण को विकसित कर सकता है। रजस् और तमस् से ऊपर उठकर सत्व के मार्ग पर चलने से आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग खुलता है।भगवद गीता (14.20) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्। जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्रुते ॥"

अर्थ अब जीव इन तीन गुणों को पार कर लेता है. तो वह जन्म, मृत्यु, जरा (बुढ़ापा) और दुःख से मुक्त हो जाता है और अमृत (मोक्ष) को प्राप्त करता है।)

निष्कर्ष: त्रिगुणात्मक प्रकृति सृष्टि और जीवन की जटिलता को समझने का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। सत्त्व, रजस्, और तमस- ये तीनों गुण हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं। जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति के लिए सत्त्व गुण की प्रधानता आवश्यक है, लेकिन रजस और तमस भी जीवन की गतिशीलता और चुनौतियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। वेदों और भगवद गीता जैसे शास्त्रों में त्रिगुण सिद्धांत का गहन वर्णन मिलता है, जो हमें आत्मनिरीक्षण और आत्म-संयम के माध्यम से - जीवन को श्रेष्ठ और पूर्ण बनाने की प्रेरणा देता है।


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